सुखमनी साहिब – ५




असटपदी : १३ - १५
(१३)
सलोकु
संत सरनि जो जनु परै सो जनु उधरनहार
संत की निंदा नानका बहुरि बहुरि अवतार ॥१॥
असटपदी
संत कै दूखनि आरजा घटै
संत कै दूखनि जम ते नही छुटै
संत कै दूखनि सुखु सभु जाइ
संत कै दूखनि नरक महि पाइ
संत कै दूखनि मति होइ मलीन
संत कै दूखनि सोभा ते हीन
संत के हते कउ रखै कोइ
संत कै दूखनि थान भ्रसटु होइ
संत क्रिपाल क्रिपा जे करै
नानक संतसंगि निंदकु भी तरै ॥१॥
संत के दूखन ते मुखु भवै
संतन कै दूखनि काग जिउ लवै
संतन कै दूखनि सरप जोनि पाइ
संत कै दूखनि त्रिगद जोनि किरमाइ
संतन कै दूखनि त्रिसना महि जलै
संत कै दूखनि सभु को छलै
संत कै दूखनि तेजु सभु जाइ
संत कै दूखनि नीचु नीचाइ
संत दोखी का थाउ को नाहि
नानक संत भावै ता ओइ भी गति पाहि ॥२॥
संत का निंदकु महा अतताई
संत का निंदकु खिनु टिकनु पाई
संत का निंदकु महा हतिआरा
संत का निंदकु परमेसुरि मारा
संत का निंदकु राज ते हीनु
संत का निंदकु दुखीआ अरु दीनु
संत के निंदक कउ सरब रोग
संत के निंदक कउ सदा बिजोग
संत की निंदा दोख महि दोखु
नानक संत भावै ता उस का भी होइ मोखु ॥३॥
संत का दोखी सदा अपवितु
संत का दोखी किसै का नही मितु
संत के दोखी कउ डानु लागै
संत के दोखी कउ सभ तिआगै
संत का दोखी महा अहंकारी
संत का दोखी सदा बिकारी
संत का दोखी जनमै मरै
संत की दूखना सुख ते टरै
संत के दोखी कउ नाही ठाउ
नानक संत भावै ता लए मिलाइ ॥४॥
संत का दोखी अध बीच ते टूटै
संत का दोखी कितै काजि पहूचै
संत के दोखी कउ उदिआन भ्रमाईऐ
संत का दोखी उझड़ि पाईऐ
संत का दोखी अंतर ते थोथा
जिउ सास बिना मिरतक की लोथा
संत के दोखी की जड़ किछु नाहि
आपन बीजि आपे ही खाहि
संत के दोखी कउ अवरु राखनहारु
नानक संत भावै ता लए उबारि ॥५॥
संत का दोखी इउ बिललाइ
जिउ जल बिहून मछुली तड़फड़ाइ
संत का दोखी भूखा नही राजै
जिउ पावकु ईधनि नही ध्रापै
संत का दोखी छुटै इकेला
जिउ बूआड़ु तिलु खेत माहि दुहेला
संत का दोखी धरम ते रहत
संत का दोखी सद मिथिआ कहत
किरतु निंदक का धुरि ही पइआ
नानक जो तिसु भावै सोई थिआ ॥६॥
संत का दोखी बिगड़ रूपु होइ जाइ
संत के दोखी कउ दरगह मिलै सजाइ
संत का दोखी सदा सहकाईऐ
संत का दोखी मरै जीवाईऐ
संत के दोखी की पुजै आसा
संत का दोखी उठि चलै निरासा
संत कै दोखि त्रिसटै कोइ
जैसा भावै तैसा कोई होइ
पइआ किरतु मेटै कोइ
नानक जानै सचा सोइ ॥७॥
सभ घट तिस के ओहु करनैहारु
सदा सदा तिस कउ नमसकारु
प्रभ की उसतति करहु दिनु राति
तिसहि धिआवहु सासि गिरासि
सभु कछु वरतै तिस का कीआ
जैसा करे तैसा को थीआ
अपना खेलु आपि करनैहारु
दूसर कउनु कहै बीचारु
जिस नो क्रिपा करै तिसु आपन नामु देइ
बडभागी नानक जन सेइ ॥८॥१३॥

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(१४)
सलोकु
तजहु सिआनप सुरि जनहु सिमरहु हरि हरि राइ
एक आस हरि मनि रखहु नानक दूखु भरमु भउ जाइ ॥१॥
असटपदी
तजहु सिआनप सुरि जनहु सिमरहु हरि हरि राइ
देवन कउ एकै भगवानु
जिस कै दीऐ रहै अघाइ
बहुरि त्रिसना लागै आइ
मारै राखै एको आपि
मानुख कै किछु नाही हाथि
तिस का हुकमु बूझि सुखु होइ
तिस का नामु रखु कंठि परोइ
सिमरि सिमरि सिमरि प्रभु सोइ
नानक बिघनु लागै कोइ ॥१॥
उसतति मन महि करि निरंकार
करि मन मेरे सति बिउहार
निरमल रसना अम्रितु पीउ
सदा सुहेला करि लेहि जीउ
नैनहु पेखु ठाकुर का रंगु
साधसंगि बिनसै सभ संगु
चरन चलउ मारगि गोबिंद
मिटहि पाप जपीऐ हरि बिंद
कर हरि करम स्रवनि हरि कथा
हरि दरगह नानक ऊजल मथा ॥२॥
बडभागी ते जन जग माहि
सदा सदा हरि के गुन गाहि
राम नाम जो करहि बीचार
से धनवंत गनी संसार
मनि तनि मुखि बोलहि हरि मुखी
सदा सदा जानहु ते सुखी
एको एकु एकु पछानै
इत उत की ओहु सोझी जानै
नाम संगि जिस का मनु मानिआ
नानक तिनहि निरंजनु जानिआ ॥३॥
गुर प्रसादि आपन आपु सुझै
तिस की जानहु त्रिसना बुझै
साधसंगि हरि हरि जसु कहत
सरब रोग ते ओहु हरि जनु रहत
अनदिनु कीरतनु केवल बख्यानु
ग्रिहसत महि सोई निरबानु
एक ऊपरि जिसु जन की आसा
तिस की कटीऐ जम की फासा
पारब्रहम की जिसु मनि भूख
नानक तिसहि लागहि दूख ॥४॥
जिस कउ हरि प्रभु मनि चिति आवै
सो संतु सुहेला नही डुलावै
जिसु प्रभु अपुना किरपा करै
सो सेवकु कहु किस ते डरै
जैसा सा तैसा द्रिसटाइआ
अपुने कारज महि आपि समाइआ
सोधत सोधत सोधत सीझिआ
गुर प्रसादि ततु सभु बूझिआ
जब देखउ तब सभु किछु मूलु
नानक सो सूखमु सोई असथूलु ॥५॥
नह किछु जनमै नह किछु मरै
आपन चलितु आप ही करै
आवनु जावनु द्रिसटि अनद्रिसटि
आगिआकारी धारी सभ स्रिसटि
आपे आपि सगल महि आपि
अनिक जुगति रचि थापि उथापि
अबिनासी नाही किछु खंड
धारण धारि रहिओ ब्रहमंड
अलख अभेव पुरख परताप
आपि जपाए नानक जाप ॥६॥
जिन प्रभु जाता सु सोभावंत
सगल संसारु उधरै तिन मंत
प्रभ के सेवक सगल उधारन
प्रभ के सेवक दूख बिसारन
आपे मेलि लए किरपाल
गुर का सबदु जपि भए निहाल
उन की सेवा सोई लागै
जिस नो क्रिपा करहि बडभागै
नामु जपत पावहि बिस्रामु
नानक तिन पुरख कउ ऊतम करि मानु ॥७॥
जो किछु करै सु प्रभ कै रंगि
सदा सदा बसै हरि संगि
सहज सुभाइ होवै सो होइ
करणैहारु पछाणै सोइ
प्रभ का कीआ जन मीठ लगाना
जैसा सा तैसा द्रिसटाना
जिस ते उपजे तिसु माहि समाए
ओइ सुख निधान उनहू बनि आए
आपस कउ आपि दीनो मानु
नानक प्रभ जनु एको जानु ॥८॥१४॥

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(१५)
सलोकु
सरब कला भरपूर प्रभ बिरथा जाननहार
जा कै सिमरनि उधरीऐ नानक तिसु बलिहार ॥१॥
असटपदी
टूटी गाढनहार गोपाल
सरब जीआ आपे प्रतिपाल
सगल की चिंता जिसु मन माहि
तिस ते बिरथा कोई नाहि
रे मन मेरे सदा हरि जापि
अबिनासी प्रभु आपे आपि
आपन कीआ कछू होइ
जे सउ प्रानी लोचै कोइ
तिसु बिनु नाही तेरै किछु काम
गति नानक जपि एक हरि नाम ॥१॥
रूपवंतु होइ नाही मोहै
प्रभ की जोति सगल घट सोहै
धनवंता होइ किआ को गरबै
जा सभु किछु तिस का दीआ दरबै
अति सूरा जे कोऊ कहावै
प्रभ की कला बिना कह धावै
जे को होइ बहै दातारु
तिसु देनहारु जानै गावारु
जिसु गुर प्रसादि तूटै हउ रोगु
नानक सो जनु सदा अरोगु ॥२॥
जिउ मंदर कउ थामै थमनु
तिउ गुर का सबदु मनहि असथमनु
जिउ पाखाणु नाव चड़ि तरै
प्राणी गुर चरण लगतु निसतरै
जिउ अंधकार दीपक परगासु
गुर दरसनु देखि मनि होइ बिगासु
जिउ महा उदिआन महि मारगु पावै
तिउ साधू संगि मिलि जोति प्रगटावै
तिन संतन की बाछउ धूरि
नानक की हरि लोचा पूरि ॥३॥
मन मूरख काहे बिललाईऐ
पुरब लिखे का लिखिआ पाईऐ
दूख सूख प्रभ देवनहारु
अवर तिआगि तू तिसहि चितारु
जो कछु करै सोई सुखु मानु
कउन बसतु आई तेरै संग
लपटि रहिओ रसि लोभी पतंग
राम नाम जपि हिरदे माहि
नानक पति सेती घरि जाहि ॥४॥
जिसु वखर कउ लैनि तू आइआ
राम नामु संतन घरि पाइआ
तजि अभिमानु लेहु मन मोलि
राम नामु हिरदे महि तोलि
लादि खेप संतह संगि चालु
अवर तिआगि बिखिआ जंजाल
धंनि धंनि कहै सभु कोइ
मुख ऊजल हरि दरगह सोइ
इहु वापारु विरला वापारै
नानक ता कै सद बलिहारै ॥५॥
चरन साध के धोइ धोइ पीउ
अरपि साध कउ अपना जीउ
साध की धूरि करहु इसनानु
साध ऊपरि जाईऐ कुरबानु
साध सेवा वडभागी पाईऐ
साधसंगि हरि कीरतनु गाईऐ
अनिक बिघन ते साधू राखै
हरि गुन गाइ अम्रित रसु चाखै
ओट गही संतह दरि आइआ
सरब सूख नानक तिह पाइआ ॥६॥
मिरतक कउ जीवालनहार
भूखे कउ देवत अधार
सरब निधान जा की द्रिसटी माहि
पुरब लिखे का लहणा पाहि
सभु किछु तिस का ओहु करनै जोगु
तिसु बिनु दूसर होआ होगु
जपि जन सदा सदा दिनु रैणी
सभ ते ऊच निरमल इह करणी
करि किरपा जिस कउ नामु दीआ
नानक सो जनु निरमलु थीआ ॥७॥
जा कै मनि गुर की परतीति
तिसु जन आवै हरि प्रभु चीति
भगतु भगतु सुनीऐ तिहु लोइ
जा कै हिरदै एको होइ
सचु करणी सचु ता की रहत
सचु हिरदै सति मुखि कहत
साची द्रिसटि साचा आकारु
सचु वरतै साचा पासारु
पारब्रहमु जिनि सचु करि जाता
नानक सो जनु सचि समाता ॥८॥१५॥
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