सुखमनी साहिब – ८




असटपदी : २२ - २४
 (२२)
सलोकु
जीअ जंत के ठाकुरा आपे वरतणहार
नानक एको पसरिआ दूजा कह द्रिसटार ॥१॥
असटपदी
आपि कथै आपि सुननैहारु
आपहि एकु आपि बिसथारु
जा तिसु भावै ता स्रिसटि उपाए
आपनै भाणै लए समाए
तुम ते भिंन नही किछु होइ
आपन सूति सभु जगतु परोइ
जा कउ प्रभ जीउ आपि बुझाए
सचु नामु सोई जनु पाए
सो समदरसी तत का बेता
नानक सगल स्रिसटि का जेता ॥१॥
जीअ जंत्र सभ ता कै हाथ
दीन दइआल अनाथ को नाथु
जिसु राखै तिसु कोइ मारै
सो मूआ जिसु मनहु बिसारै
तिसु तजि अवर कहा को जाइ
सभ सिरि एकु निरंजन राइ
जीअ की जुगति जा कै सभ हाथि
अंतरि बाहरि जानहु साथि
गुन निधान बेअंत अपार
नानक दास सदा बलिहार ॥२॥
पूरन पूरि रहे दइआल
सभ ऊपरि होवत किरपाल
अपने करतब जानै आपि
अंतरजामी रहिओ बिआपि
प्रतिपालै जीअन बहु भाति
जो जो रचिओ सु तिसहि धिआति
जिसु भावै तिसु लए मिलाइ
भगति करहि हरि के गुण गाइ
मन अंतरि बिस्वासु करि मानिआ
करनहारु नानक इकु जानिआ ॥३॥
जनु लागा हरि एकै नाइ
तिस की आस बिरथी जाइ
सेवक कउ सेवा बनि आई
हुकमु बूझि परम पदु पाई
इस ते ऊपरि नही बीचारु
जा कै मनि बसिआ निरंकारु
बंधन तोरि भए निरवैर
अनदिनु पूजहि गुर के पैर
इह लोक सुखीए परलोक सुहेले
नानक हरि प्रभि आपहि मेले ॥४॥
साधसंगि मिलि करहु अनंद
गुन गावहु प्रभ परमानंद
राम नाम ततु करहु बीचारु
द्रुलभ देह का करहु उधारु
अम्रित बचन हरि के गुन गाउ
प्रान तरन का इहै सुआउ
आठ पहर प्रभ पेखहु नेरा
मिटै अगिआनु बिनसै अंधेरा
सुनि उपदेसु हिरदै बसावहु
मन इछे नानक फल पावहु ॥५॥
हलतु पलतु दुइ लेहु सवारि
राम नामु अंतरि उरि धारि
पूरे गुर की पूरी दीखिआ
जिसु मनि बसै तिसु साचु परीखिआ
मनि तनि नामु जपहु लिव लाइ
दूखु दरदु मन ते भउ जाइ
सचु वापारु करहु वापारी
दरगह निबहै खेप तुमारी
एका टेक रखहु मन माहि
नानक बहुरि आवहि जाहि ॥६॥
तिस ते दूरि कहा को जाइ
उबरै राखनहारु धिआइ
निरभउ जपै सगल भउ मिटै
प्रभ किरपा ते प्राणी छुटै
जिसु प्रभु राखै तिसु नाही दूख
नामु जपत मनि होवत सूख
चिंता जाइ मिटै अहंकारु
तिसु जन कउ कोइ पहुचनहारु
सिर ऊपरि ठाढा गुरु सूरा
नानक ता के कारज पूरा ॥७॥
मति पूरी अम्रितु जा की द्रिसटि
दरसनु पेखत उधरत स्रिसटि
चरन कमल जा के अनूप
सफल दरसनु सुंदर हरि रूप
धंनु सेवा सेवकु परवानु
अंतरजामी पुरखु प्रधानु
जिसु मनि बसै सु होत निहालु
ता कै निकटि आवत कालु
अमर भए अमरा पदु पाइआ
साधसंगि नानक हरि धिआइआ ॥८॥२२॥
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 (२३)
सलोकु
गिआन अंजनु गुरि दीआ अगिआन अंधेर बिनासु
हरि किरपा ते संत भेटिआ नानक मनि परगासु ॥१॥
असटपदी
संतसंगि अंतरि प्रभु डीठा
नामु प्रभू का लागा मीठा
सगल समिग्री एकसु घट माहि
अनिक रंग नाना द्रिसटाहि
नउ निधि अम्रितु प्रभ का नामु
देही महि इस का बिस्रामु
सुंन समाधि अनहत तह नाद
कहनु जाई अचरज बिसमाद
तिनि देखिआ जिसु आपि दिखाए
नानक तिसु जन सोझी पाए ॥१॥
सो अंतरि सो बाहरि अनंत
घटि घटि बिआपि रहिआ भगवंत
धरनि माहि आकास पइआल
सरब लोक पूरन प्रतिपाल
बनि तिनि परबति है पारब्रहमु
जैसी आगिआ तैसा करमु
पउण पाणी बैसंतर माहि
चारि कुंट दह दिसे समाहि
तिस ते भिंन नही को ठाउ
गुर प्रसादि नानक सुखु पाउ ॥२॥
बेद पुरान सिम्रिति महि देखु
ससीअर सूर नख्यत्र महि एकु
बाणी प्रभ की सभु को बोलै
आपि अडोलु कबहू डोलै
सरब कला करि खेलै खेल
मोलि पाईऐ गुणह अमोल
सरब जोति महि जा की जोति
धारि रहिओ सुआमी ओति पोति
गुर परसादि भरम का नासु
नानक तिन महि एहु बिसासु ॥३॥
संत जना का पेखनु सभु ब्रहम
संत जना कै हिरदै सभि धरम
संत जना सुनहि सुभ बचन
सरब बिआपी राम संगि रचन
जिनि जाता तिस की इह रहत
सति बचन साधू सभि कहत
जो जो होइ सोई सुखु मानै
करन करावनहारु प्रभु जानै
अंतरि बसे बाहरि भी ओही
नानक दरसनु देखि सभ मोही ॥४॥
आपि सति कीआ सभु सति
तिसु प्रभ ते सगली उतपति
तिसु भावै ता करे बिसथारु
तिसु भावै ता एकंकारु
अनिक कला लखी नह जाइ
जिसु भावै तिसु लए मिलाइ
कवन निकटि कवन कहीऐ दूरि
आपे आपि आप भरपूरि
अंतरगति जिसु आपि जनाए
नानक तिसु जन आपि बुझाए ॥५॥
सरब भूत आपि वरतारा
सरब नैन आपि पेखनहारा
सगल समग्री जा का तना
आपन जसु आप ही सुना
आवन जानु इकु खेलु बनाइआ
आगिआकारी कीनी माइआ
सभ कै मधि अलिपतो रहै
जो किछु कहणा सु आपे कहै
आगिआ आवै आगिआ जाइ
नानक जा भावै ता लए समाइ ॥६॥
इस ते होइ सु नाही बुरा
ओरै कहहु किनै कछु करा
आपि भला करतूति अति नीकी
आपे जानै अपने जी की
आपि साचु धारी सभ साचु
ओति पोति आपन संगि राचु
ता की गति मिति कही जाइ
दूसर होइ सोझी पाइ
तिस का कीआ सभु परवानु
गुर प्रसादि नानक इहु जानु ॥७॥
जो जानै तिसु सदा सुखु होइ
आपि मिलाइ लए प्रभु सोइ
ओहु धनवंतु कुलवंतु पतिवंतु
जीवन मुकति जिसु रिदै भगवंतु
धंनु धंनु धंनु जनु आइआ
जिसु प्रसादि सभु जगतु तराइआ
जन आवन का इहै सुआउ
जन कै संगि चिति आवै नाउ
आपि मुकतु मुकतु करै संसारु
नानक तिसु जन कउ सदा नमसकारु ॥८॥२३॥
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(२४)
सलोकु
पूरा प्रभु आराधिआ पूरा जा का नाउ
नानक पूरा पाइआ पूरे के गुन गाउ ॥१॥
असटपदी
पूरे गुर का सुनि उपदेसु
पारब्रहमु निकटि करि पेखु
सासि सासि सिमरहु गोबिंद
मन अंतर की उतरै चिंद
आस अनित तिआगहु तरंग
संत जना की धूरि मन मंग
आपु छोडि बेनती करहु
साधसंगि अगनि सागरु तरहु
हरि धन के भरि लेहु भंडार
नानक गुर पूरे नमसकार ॥१॥
खेम कुसल सहज आनंद
साधसंगि भजु परमानंद
नरक निवारि उधारहु जीउ
गुन गोबिंद अम्रित रसु पीउ
चिति चितवहु नाराइण एक
एक रूप जा के रंग अनेक
गोपाल दामोदर दीन दइआल
दुख भंजन पूरन किरपाल
सिमरि सिमरि नामु बारं बार
नानक जीअ का इहै अधार ॥२॥
उतम सलोक साध के बचन
अमुलीक लाल एहि रतन
सुनत कमावत होत उधार
आपि तरै लोकह निसतार
सफल जीवनु सफलु ता का संगु
जा कै मनि लागा हरि रंगु
जै जै सबदु अनाहदु वाजै
सुनि सुनि अनद करे प्रभु गाजै
प्रगटे गुपाल महांत कै माथे
नानक उधरे तिन कै साथे ॥३॥
सरनि जोगु सुनि सरनी आए
करि किरपा प्रभ आप मिलाए
मिटि गए बैर भए सभ रेन
अम्रित नामु साधसंगि लैन
सुप्रसंन भए गुरदेव
पूरन होई सेवक की सेव
आल जंजाल बिकार ते रहते
राम नाम सुनि रसना कहते
करि प्रसादु दइआ प्रभि धारी
नानक निबही खेप हमारी ॥४॥
प्रभ की उसतति करहु संत मीत
सावधान एकागर चीत
सुखमनी सहज गोबिंद गुन नाम
जिसु मनि बसै सु होत निधान
सरब इछा ता की पूरन होइ
प्रधान पुरखु प्रगटु सभ लोइ
सभ ते ऊच पाए असथानु
बहुरि होवै आवन जानु
हरि धनु खाटि चलै जनु सोइ
नानक जिसहि परापति होइ ॥५॥
खेम सांति रिधि नव निधि
बुधि गिआनु सरब तह सिधि
बिदिआ तपु जोगु प्रभ धिआनु
गिआनु स्रेसट ऊतम इसनानु
चारि पदारथ कमल प्रगास
सभ कै मधि सगल ते उदास
सुंदरु चतुरु तत का बेता
समदरसी एक द्रिसटेता
इह फल तिसु जन कै मुखि भने
गुर नानक नाम बचन मनि सुने ॥६॥
इहु निधानु जपै मनि कोइ
सभ जुग महि ता की गति होइ
गुण गोबिंद नाम धुनि बाणी
सिम्रिति सासत्र बेद बखाणी
सगल मतांत केवल हरि नाम
गोबिंद भगत कै मनि बिस्राम
कोटि अप्राध साधसंगि मिटै
संत क्रिपा ते जम ते छुटै
जा कै मसतकि करम प्रभि पाए
साध सरणि नानक ते आए ॥७॥
जिसु मनि बसै सुनै लाइ प्रीति
तिसु जन आवै हरि प्रभु चीति
जनम मरन ता का दूखु निवारै
दुलभ देह ततकाल उधारै
निरमल सोभा अम्रित ता की बानी
एकु नामु मन माहि समानी
दूख रोग बिनसे भै भरम
सभ ते ऊच ता की सोभा बनी
नानक इह गुणि नामु सुखमनी ॥८॥२४॥
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