त्रयोदशी/प्रदोष व्रत कथाएँ



त्रयोदशी/प्रदोष व्रत कथाएँ

प्रदोष वारपरिचय एवं महत्व
. रवि प्रदोषआयु वृद्धि आरोग्य के लिए
. सोम प्रदोषअभीष्ट सिद्धि के लिए
. मंगल प्रदोषरोगों से मुक्ति स्वास्थ्य के लिए
. बुध प्रदोषसर्व कामना सिद्धि के लिए
. गुरु प्रदोषशत्रु विनाश के लिए
. शुक्र प्रदोषसौभाग्य और स्त्री की समृद्धि के लिए
. शनि प्रदोषपुत्र प्राप्ति के लिए
जो व्रत करना हो, उस वार को पड़ने वाली त्रयोदशी का चयन करें तथा उसी वार के अनुसार कथा पढ़े-सुनें

त्रयोदशी/प्रदोष व्रत का माहात्म्य
प्रदोष अथवा त्रयोदशी का व्रत मनुष्य को संतोषी सुखी बनाता है इस व्रत से सम्पूर्ण पापों का नाश होता है इस व्रत के प्रभाव से विधवा स्त्री अधर्म से दूर रहती है और विवाहित स्त्रियों का सुहाग अटल रहता है वार के अनुसार जो व्रत किया जाए, तदनुसार ही उसका फल प्राप्त होता है सूत जी कथनानुसार- त्रयोदशी का व्रत करने वाले को सौ गाय-दान करने का फल प्राप्त होता है
उद्यापन
विधि-विधान से इस व्रत को करने पर सभी कष्ट दूर होते हैं और इच्छित वस्तु की प्राप्ति होती है धर्मालुओं को ग्यारह त्रयोदशी अथवा वर्ष भर की २६ त्रयोदशी के व्रत करने के उपरान्त उद्यापन करना चाहिए
प्रदोष व्रत विधि:
ब्रह्ममुहूर्त में उठकर नित्यकर्मों से निवृत्त हो भगवान शंकर का स्मरण करें निराहार रहें सायंकाल, सूर्यास्त से एक घण्टा पूर्व, स्नानादि कर्मों से निवृत्त हो श्वेत वस्त्र धारण करें पूजन स्थल को स्वच्छ जल और गाय के गोबर से लीपकर मंडप को भली-भांति सजाकर पांच रंगों को मिलाकर पद्म पुष्प की आकृति बनाकर कुशा के आसन पर उत्तर-पूर्व दिशा की ओर मुख करके बैठें और शंकर भगवान का पूजन करें
नमः शिवाय’ इस पंचाक्षर मन्त्र का जाप करते हुए जल चढ़ावें और ऋतुफल अर्पित करें जल चढ़ाते समय इस बात का विशेष ध्यान रखें कि जलधारा टूटे नहीं इसी प्रकार मंत्र का जप लयबद्ध हो जल चढ़ाते समय यदि आंखें खुली हुई हैं, तो दृष्टि जलधारा पर टिकी हो और यदि भाव में आंखें मुंद गयी हों, तो ध्यान जप के शब्दों-अर्थों के साथ चल रहा हो यदि मंत्र के उच्चारण में गूंज पैदा कर सकें अर्थात् मंत्र यदि ओंठ, कंठ और नाभिप्रदेश से समन्वित रूप से उठे, तो यह और प्रभावी होगा



त्रयोदशी व्रत उद्यापन विधि:
*कार्य सिद्धि के उपरान्त त्रयोदशी के दिन ही उद्यापन करें
*एक दिन पूर्व गणेश पूजन करें
*रात्रि में भजन-कीर्तन द्वारा जागरण करें
*प्रातः स्नानादि के उपरान्त रंगीन पद्म-पुष्प अथवा वस्त्रों से मंडप को सजाएं
*मंडप में शिव-पार्वती की मूर्ति स्थापित कर विधिपूर्वक पूजन करें
*हवन में खीर की आहुति देते हुए  उमा सहित शिवाय नमः’ मन्त्र का 108 बार जप करें
*हवन के बाद आरती उतारें और शान्ति पाठ करें
*तत्पश्चात् दो ब्राह्मणों को भोजन कराएं तथा यथाशक्ति दान दें
*ब्राह्मणों का आशीर्वाद लें

स्कन्ध पुराण में कहा गया है कि जो स्त्री-पुरुष विधि-विधान के साथ यह व्रत एवं उद्यापन करते हैं, भगवान शंकर-पार्वती उनकी समस्त मनोकामनाएं पूर्ण करते हैं फलस्वरूप उन्हें मोक्ष प्राप्त होता है
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