अपरा (अचला) एकादशी



11. अपरा (अचला) एकादशी
 (ज्येष्ठ कृष्ण एकादशी)
युधिष्ठिर कहने लगे कि हे भगवन्! ज्येष्ठ कृष्ण  एकादशी  का  क्या नाम है तथा उसका माहात्म्य क्या है सो कृपा कर कहिए?

भगवान श्रीकृष्ण कहने लगे कि हे राजन! यह एकादशीअचलातथाअपरादो नामों से जानी जाती है। पुराणों के अनुसार  ज्येष्ठ कृष्ण पक्ष की एकादशी अपरा एकादशी है, क्योंकि यह अपार धन देने वाली है। जो मनुष्य इस व्रत को करते हैं, वे संसार में प्रसिद्ध हो जाते हैं।

इस दिन भगवान त्रिविक्रम की पूजा की जाती है। अपरा एकादशी के व्रत के प्रभाव से ब्रह्म हत्या, भूत योनि, दूसरे की निंदा आदि के सब पाप दूर हो जाते हैं। इस व्रत के करने से झूठी गवाही देना, झूठ बोलना, झूठे शास्त्र पढ़ना या बनाना, झूठा ज्योतिषी बनना तथा झूठा वैद्य बनना आदि सब पाप नष्ट हो जाते हैं। जो क्षत्रिय युद्ध से भाग जाए वे नरकगामी होते हैं, परंतु अपरा एकादशी का व्रत करने से वे भी व्रत करने से इस पाप से मुक्त हो जाते हैं।
यह व्रत पापरूपी वृक्ष को काटने के लिए कुल्हाड़ी है। अत: मनुष्य को पापों से डरते हुए इस व्रत को अवश्य करना चाहिए। अपरा एकादशी का व्रत तथा भगवान का पूजन करने से मनुष्य सब पापों से छूटकर विष्णु लोक को जाता है।
अपरा (अचला) एकादशी व्रत कथा:
प्राचीन काल में महीध्वज नामक एक धर्मात्मा राजा था। उसका छोटा भाई वज्रध्वज बड़ा ही क्रूर, अधर्मी तथा अन्यायी था। वह अपने बड़े भाई से द्वेष रखता था। उस पापी ने एक दिन रात्रि में अपने बड़े भाई की हत्या करके उसकी देह को एक जंगली पीपल के नीचे गाड़ दिया। इस अकाल मृत्यु से राजा प्रेतात्मा के रूप में उसी पीपल पर रहने लगा और अनेक उत्पात करने लगा।

एक दिन अचानक धौम्य नामक ॠषि उधर से गुजरे। उन्होंने प्रेत को देखा और तपोबल से उसके अतीत को जान लिया। अपने तपोबल से प्रेत उत्पात का कारण समझा। ॠषि ने प्रसन्न होकर उस प्रेत को पीपल के पेड़ से उतारा तथा परलोक विद्या का उपदेश दिया।

दयालु ॠषि ने राजा की प्रेत योनि से मुक्ति के लिए स्वयं ही अपरा (अचला) एकादशी का व्रत किया और उसे अगति से छुड़ाने को उसका पुण्य प्रेत को अर्पित कर दिया। इस पुण्य के प्रभाव से राजा की प्रेत योनि से मुक्ति हो गई। वह ॠषि को धन्यवाद देता हुआ दिव्य देह धारण कर पुष्पक विमान में बैठकर स्वर्ग को चला गया।
हे राजन! यह अपरा एकादशी की कथा मैंने लोकहित के लिए कही है। इसे पढ़ने अथवा सुनने से मनुष्य सब पापों से छूट जाता है।

महत्त्व:
जो फल तीनों पुष्कर में कार्तिक पूर्णिमा को स्नान करने से या गंगा तट पर पितरों को पिंडदान करने से प्राप्त होता है, वही अपरा एकादशी का व्रत करने से प्राप्त होता है। मकर के सूर्य में प्रयागराज के स्नान से, शिवरात्रि का व्रत करने से, सिंह राशि के बृहस्पति में गोमती नदी के स्नान से, कुंभ में केदारनाथ के दर्शन या बद्रीनाथ के दर्शन, सूर्यग्रहण में कुरुक्षेत्र के स्नान से, स्वर्णदान करने से अथवा अर्द्ध प्रसूता गौदान से जो फल मिलता है, वही फल अपरा एकादशी के व्रत से मिलता है।
~*~*~*~*~*~*~*~*~*~*~*~*~*~*~


एकादशी की पावन आरती
    

ऊँ जय एकादशीजय एकादशीजय एकादशी माता 

विष्णु पूजा व्रत को धारण करशक्ति मुक्ति पाता ।। 

ऊँ जय एकादशी…।।

तेरे नाम गिनाऊँ देवीभक्ति प्रदान करनी 

गण गौरव की देनी माताशास्त्रों में वरनी ।।

ऊँ जय एकादशी…।।

मार्गशीर्ष के कृ्ष्णपक्ष में "उत्पन्नाहोती

शुक्ल पक्ष में "मोक्षदायिनी", पापों को धोती ।। 

ऊँ जय एकादशी…।।


पौष के कृ्ष्णपक्ष की, "सफलानाम कहैं

शुक्लपक्ष में होय "पुत्रदा", आनन्द अधिक लहैं ।। 

ऊँ जय एकादशी…।।


नाम "षटतिलामाघ मास मेंकृष्णपक्ष आवै।

शुक्लपक्ष में "जयाकहावैविजय सदा पावै ।। 

ऊँ जय एकादशी…।।


"विजयाफागुन कृ्ष्णपक्ष में शुक्ला "आमलकी

"पापमोचनीकृ्ष्ण पक्ष मेंचैत्र  मास बल की ।। 

ऊँ जय एकादशी…।।


चैत्र शुक्ल में नाम "कामदाधन देने वाली 

नाम "बरुथिनीकृ्ष्णपक्ष मेंवैसाख माह वाली ।। 

ऊँ जय एकादशी…।।


शुक्ल पक्ष में होये"मोहिनी", "अपराज्येष्ठ कृ्ष्णपक्षी 

नाम"निर्जलासब सुख करनीशुक्लपक्ष रखी ।। 

ऊँ जय एकादशी…।।


"योगिनीनाम आषाढ में जानोंकृ्ष्णपक्ष करनी 

"देवशयनीनाम कहायोशुक्लपक्ष धरनी ।। 

ऊँ जय एकादशी…।।


"कामिकाश्रावण मास में आवैकृष्णपक्ष कहिए।

श्रावण शुक्ला होय "पवित्रा", आनन्द से रहिए।। 

ऊँ जय एकादशी…।।

"अजाभाद्रपद कृ्ष्णपक्ष की, "परिवर्तिनीशुक्ला।

"इन्द्राआश्चिन कृ्ष्णपक्ष मेंव्रत से भवसागर निकला।। 

ऊँ जय एकादशी…।।


"पापांकुशाहै शुक्ल पक्ष मेंआप हरनहारी 

"रमामास कार्तिक में आवैसुखदायक भारी ।।

ऊँ जय एकादशी…।।


"देवोत्थानीशुक्लपक्ष कीदु:खनाशक मैया।

लौंद मास में करूँ विनती पार करो नैया ।। 

ऊँ जय एकादशी…।।


"परमाकृ्ष्णपक्ष में होतीजन मंगल करनी।।

शुक्ल लौंद में होय "पद्मिनी", दु: दारिद्र हरनी ।। 

ऊँ जय एकादशी…।।


जो कोई आरती एकाद्शी कीभक्ति सहित गावै 

जन "गुरदितास्वर्ग का वासानिश्चय वह पावै।।


ऊँ जय एकादशीजय एकादशीजय एकादशी माता 

विष्णु पूजा व्रत को धारण करशक्ति मुक्ति पाता ।। 


~*~*~*~*~*~*~*~*~*~*~*~*~*~*~*


No comments:

Post a Comment